मधुपुष्प -

 मधुपुष्प - चार





राष्ट्रीय कृषी और ग्रामीण विकास बँक (नाबार्ड) की ग्रृहपत्रीका सृजना के लिये 2020 मे आयोजित प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार प्राप्त हिंदी रचना आपके लिये आज नाबार्ड के 40 वे स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर सादर प्रस्तुत.


जीवन की दुसरी पारी-धूप छाव


रिझ़र्व बँक और नाबार्ड जैसी शीर्ष संस्थाओं में कार्य करते हुए राष्ट्रसेवा का दीर्घकाल मौका मिलना मेरे लिए भाग्यशाली रहा.30 नवंबर 2012, श्याम 5.30 बजे रिटायरमेंट बिदाई समारोह के साथही पहली पारी समाप्त हो गई और घर पहुचते पहुचते पदनाम के साथ 'भूतपूर्व' टॅग लग गया. इसके साथ ही दुसरी पारी की शुरुवात हो गई.


किसी की जन्म या मृत्त्यू की तारीख निश्चित नहीं होती, परंतु नोकरी करने वाले व्यक्ति की रिटायरमेंट की तारीख नोकरी शुरु होने के दिन ही निश्चित हो जाती है. 36 साल नोकरी करने के बाद निवृत्त होना और दुसरे दिनसे ही उस संस्था से पूर्ण रूपसे अलग होना हर व्यक्ति के लिए एक भावनिक द्वंद्व होता है.


क्या ऐसा बदलाव आसानीसे स्विकारना संभव  है? नहीं, बिलकुल नहीं. पहली पारी मे आपका लगभग 50% समय और कार्यक्षमता आपके कार्यालयीन कामों मे व्यतीत होती है और शेष 12 घंटे मे आप 6 घंटे नींद और 6 घंटे परिवार के लिए दे सकते हो. लेकिन अब पुरे 24 घंटे आप अपनी इच्छानुसार व्यय कर सकते हो. और यहींसे मेरे दुसरी पारी की असली परीक्षा आरंभ हुई.


जिसकी पहली पारी जितनी प्यारी उसकी दुसरी पारी उतनी ही राजदुलारी!!!


अपने जीवन का बहुमोल, सबसे क्रियाशील, लगभग 40% हिस्सा आप अपनी संस्था को अर्पण करने के फलस्वरुप रिटायरमेंट के अवसर पर विविध धनराशीयां उपलब्ध होती है, जिसमे पीएफ, ग्रेच्युइटी, पेन्शन कम्युटेशन प्रमुख है.साथही जिंदगी भर मिलने वाला पेन्शन और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धी के कारण जीवन की दुसरी पारी की एक मजबुत नींव रखी जाती है, जिससे आपकी अधिक तर समस्याओंका हल शुरुमें ही हो चुका होता है.


लेकिन शेष जीवन में सौख्य और खुशहाली निरंतर मिलती रहने के लिए आपके साथ तीन पार्टनर अवश्य होने चाहिए. वो पार्टनर है परिवार, दोस्त और रिश्तेदार.हम चाहते है कि हमारी दुसरी पारी भी इन पार्टनरों के साथ पहली पारी जितनी ही लंबी और खुशहाल हो. लेकिन, मन कहता है:


'बोल मेरी तकदीर मे क्या है मेरे हमसफर अब तो बता, जीवन के दो पहलू है हरियाली और रास्ता.'


पहली पारीकी हरियाली खत्म होते होते दुसरी पारी का रास्ता शुरू हो चुका होता है.


कार्यरत जीवनसे निवृत्त होने का यह स्थित्यंतर अनिवार्य होता है.मेरे लिए यह प्रक्रिया शुरुमें  कठीण लेकिन कुछ समय बाद उतनी ही आनंददायी और रोमांचकारी होती गयी.देखते ही देखते मैं पप्पा और अंकल से बाबा-आज्जू, दादाजी, नानाजी कहलाने लगा.नॉर्मल बने रहनेकी जगह मै फॉर्मल से इनफॉर्मल बनते जा रहा हूं.मेरे शर्ट-पॅन्ट की जगह अब टी-शर्ट और बर्मुडाने ले ली है. चमडे के काले जुते हमेशा के लिए सेल्फ कॉरन्टाईन हो चुके है. उनकी जगह फ्लोटर्स और स्पोर्ट शूज ने लेे ली है.फॉर्मल शर्ट-पॅन्ट कई महिनों से अलमारी से बाहर नही निकल रहे है. घर में अब ट्रेडमील आ चुकी.  सेहत पे इतना ध्यान मैने कभी नही दिया. लेकिन अब लगता है,


जान है तो जहॉं है'


पुणे को महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी कहते है. यहां अनगिनत मनोरंजन कार्यक्रम सालभर चलते रहते है. मुझे शॉपिंग मॉल और मल्टीप्लेक्स मे जाने की जगह थिएटर मे नाटक, ऑर्केस्ट्रा देखना और दुकानों में बार्गेनिंग करने मे अधिक आनंद प्राप्त होता है. जब भी टाइम मिलता है, मैं पुराने गाने सुनना,  सोशल मीडिया मे व्यस्त रहना, कुछ चुनिंदा किताबें पढना आदि मे अच्छा वक्त बिताता हूं. घर में हमारे छोटे मेहमान शुरुसे ही हमारा दिल बहलाते है, जैसे जैसे उनकी उम्र बढती है तद्नुसार उनको अलग-अलग कहानी किस्से सुना कर मैं उन्हे और खुद को आनंदी रखता आ रहा हूं.


'हर दिल जो प्यार करेगा वो गाना गायेगा,दिवाना शैकडो में पहचाना जायेगा'.


पूणे में हम रिटायर्ड लोगोंने छोटे-छोटे लंच ग्रुप बनाये है.ये ग्रुप स्वयं सहायता समूह की कार्यप्रणाली नुसार काम करते है.हम ग्रुप के सभी सदस्य हर महिने एक दिन अलग अलग पिकनिक स्पॉट पर ईकठ्ठा होकर पुरानी यादें शेअर करते हुए गाने गा कर, चुटकुले सुना कर अपना मनोरंजन करते हुए फ्रेश होते है.


'किसी की मूस्कुराहों पे हो निसार

किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार'


कभी-कभी हमारे कुछ दोस्त बीमार हो जाते है, ऐसे समय उनका हॉस्पिटल प्रवेश, कॅशलेस सुविधा उपलब्ध कराना इत्यादी कामोंमे हम उनके परिवार की सहायता करते है. लेकिन सबसे दुःखदायी क्षण होता है जब हमारा कोई दोस्त हमारा साथ हमेशा के लिये छोड  कर भगवान को प्यारा हो जाता है. हर वर्ष हमारे दो तीन ऐसे साथी हमसेे बिछड जाते है जिन के साथ हमने पहली पारीमें काम किया हो और दुसरी पारीमें मौज मस्ती भी की हो. ऐसे दुखद दिनो मे दोस्तके परिवार को धीरज देना, बँक खाता, बीमा राशी, बँक से पारिवारिक पेन्शन  आदि कामों मे हम उनका मार्गदर्शन करते है.


'साथी हाथ बढाना एक अकेला थक जाएगा मिलकर बोझ़ उठाना'


हमारे रिश्तेदार भी मेरे पूरे परिवार से बहुत प्यार करते है.उनके सपोर्ट के कारण हमारी बहुत समस्याएं हल होनेमे समय समय पर  सहायता मिली है.कुछ गरीब रिश्तेदारों को आर्थिक लाभ पहुचाकर, उनके बच्चों की शिक्षा और शादी के खर्च में हम उनकी जरुरत अनुसार योगदान देते आ रहे है.ऐसा करने से थोडासा समाज सेवा का मौका भी मुझे मिल रहा है.


'जिंदगी एक सफर है सुहाना 

यहां कल क्या हो किसने जाना'


दोस्तो और रिश्तेदारों के साथ ही सबसे महत्वपूर्ण पार्टनर होते है परिवार के सदस्य. दोनो पारियो में वो रात दिन हर सुख दुःख के साथी होते है. उनके साथ भारत भ्रमण और परदेश गमन करते हुए हमने खुशीयोंकी अनगिनत यादें इकठ्ठा की है. फिर भी दुसरी पारी मे शेष पर्यटन स्थलों का और कुछ बाहर के देशो का भ्रमण करना भी हमारी बकेटलिस्ट मे था. तद्नुसार रिटायरमेंट के बाद हम युरोप, मालदिव, मॉरिशस आदि देशो का तथाअंदमान निकोबार, पांडिचेरी, रामेश्वर, पूर्वोत्तर क्षेत्र मे आसाम, मेघालय, त्रिपुरा आदी प्रदेशोंका भ्रमण कर चुके है. 


इंसान के जीवन मे हमेशा लगातार खुशिया नही मिलती है. जैसे फुलोंके साथ काटे भी होते है, सुख के पिछे पिछे दुख किसी ना किसी रूप मे दस्तक देता ही है,और अपना असर भी दिखाता है.दोस्ती पिक्चर का रफी साहब ने गाया हुआ मशहूर गीत के बोल काफी हद तक हमारे जीवन के सत्य बयान करते है :


राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है 

दुख तो अपना साथी है

सुख है छांव ढलती आती है जाती है

दुख तो अपना साथी है


ज्येष्ठ नागरिक का दु:ख और दर्द का मुख्य कारण उसके स्वास्थ्य से जुडा होता है. जैसी जैसी उम्र बढती है, कुछ ना कुछ बिमारी हमारा पिछा जरूर करती है. रिटायर होते होते मधुमेह, ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉलने अपने अपने मकान मेरे शरीर मे ढुंढ ही लिए है. फिर उनके कारण दुसरे बडे मेहमान भी धीरे धीरे अपने पाव फैलाते गए. उनके साथ जूंझते जूंझते जिंदगी धीरे धीरे आगे बढ रही है.


जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह शाम


रिटायरमेंट के दो साल बाद से ही छोटी बडी स्वास्थ्य समस्याओं के साथ मेरा सामना शुरू हो चुका था.अगले दो साल के बाद वार्षिक हेल्थ चेकअप के दौरान प्रोस्टेटमें ट्युमर की आशंका को अगस्त 2016 में बायप्सी से पुस्ती मिली. पता चला की प्रोस्टेट मे 75% तक कॅन्सर फैल चूका है, और उसे जल्द से जल्द बाहर करना जरुरी है, ताकि वह शरीर के दुसरे हिस्सोमें फैलकर जिंदगी के लिए खतरा न साबीत हो.


परिवार मे कॅन्सर का कोई पूर्वेतिहास नहीं था.यह खबर मेरे लिये और परिवार के लिये बहुत अनपेक्षित डरावना सदमा था.मेरी हालत मानो


 'पूछो ना कैसे मैने रैन बिताई, एक पल जैसे एक जुग बिता'


रिटायर हुए लगभग चार साल हो चुके थे, मुझे उस ट्युमरके कारण कुछ दर्द या पिडा भी नहीं थी, इसलिये मैने डॉक्टरोंसे हसते हसते पुछा कि अगर ऑपरेशन नही किया तो मै और कितने साल जी सकता हू? डॉक्टरोंने कहा, अगर दुसरी और कुछ समस्या नही है तो, तीन चार साल आरामसे निकाल सकते हो.


मै खुश हुआ और मजाक मे कहा " मेरा अवतारकार्य तो लगभग पूरा हो चुका है, इसलिये और चार-पाच साल मेरे लिये बहुत हो गये. मुझे ऑपरेशन नही करना है". लेकिन परिवार वाले माननेको बिलकुल तैयार नही थे. ऑपरेशन करने का निर्णय लिया गया. मुंबई मे कोकिलाबेन अस्पताल मे रोबोटीक-लॅप्रोस्कोपीक सर्जरी कामयाब हो कर दो हफ्ते के बाद मुझे हॉस्पिटलसे डिस्चार्ज किया गया.ऐसा लगा कि, 


'दुःख भरे दिन बितोरे भैया, अब सुख आयो रे'


कॅन्सर को हरा कर आज चार साल पुरे हो चुके है,अच्छी खासी जिंदगी चल रही थी, छोटे बडे सुख-दुःख झेलते हुए दुसरी पारी की नैय्या धीरे धीरे दुसरे किनारे की ओर बढती जा रही थी कि अचानक 2020 वर्ष के शुरू से ही Covid 19 महामारी ने पूरी दुनिया का सुखचैन छिन लिया है. उम्मीद है जल्दही सदिका यह महा संकट समाप्त हो और हम चाहेंगे 


 कोई लौटा दे मेरे बीते हुये दिन

 बीते हुए दिन ओ मेरे प्यारे पल झुम'




एम. जी. पाटील

महाप्रबंधक (रिटायर्ड), पुणे

मोबाईल: 9011058739

ई-मेल: madhupatil.nabard@gmail.com

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1 Comments

  1. सुदंर…..👌🙏🙏🙏
    चव्हाण

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